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मैं ऐसा क्यों हूँ

क्यों खुश हो जाता हूँ मैं तुम्हारी ख़ुशी देखके क्यों हो जाता हूँ मैं हताश तुम्हें उदास देखके चहक सा उठता हूँ मैं क्यों जब मिलने की बारी आती हैं पर क्यों मिलने बाद घंटो नींद नहीं आती हैं आँखें बंद करने से क्यों याद तुम्हारी आती हैं पर जब खुलती हैं तोह क्यों फिर तू सामने आती हैं आंसू तेरे टपकते हैं तो मैं क्यों सिसकता हूँ जरा सी तू हस्ती हैं तोह मैं क्यों निखरता हूँ जब भी देखता हूँ तुम्हे बस यह सोचता हूँ पुछु तुमसे या तुमसे कहूँ रखूं दिल में ये बात या कह दूँ सुन जरा बस इतना बता मैं ऐसा क्यों हूँ मैं ऐसा क्यों हूँ …

मुझसे क्या चाहता है जमाना

लोग रूठ जाते हैं मुझसे और मुझे मनाना नहीं आता मैं चाहता हूँ क्या मुझे जताना नहीं आता आंसुओं को पीना पुरानी आदत है मुझे आंसू बहाना नहीं आता लोग कहते हैं मेरा दिल है पत्थर का इसलिए इसको पिघलाना नहीं आता अब क्या कहूं मैं क्या आता है, क्या नहीं आता बस मुझे मौसम की तरह बदलना नहीं आता

दोस्त और दोस्ती

खुदा से क्या मांगू तेरे वास्ते सदा खुशियों से भरे हों तेरे रास्ते हंसी तेरे चेहरे पे रहे इस तरह खुशबू फूल का साथ निभाती है जिस तरह सुख इतना मिले की तू दुःख को तरसे पैसा शोहरत इज्ज़त रात दिन बरसे आसमा हों या ज़मीन हर तरफ तेरा नाम हों महकती हुई सुबह और लहलहाती शाम हो तेरी कोशिश को कामयाबी की आदत हो जाये सारा जग थम जाये तू जब भी जाये कभी कोई परेशानी तुझे न सताए रात के अँधेरे में भी तू सदा चमचमाए दुआ ये मेरी कुबूल हो जाये खुशियाँ तेरे दर से न जाये इक छोटी सी अर्जी है मान लेना हम भी तेरे दोस्त हैं ये जान लेना खुशियों में चाहे हम याद आए न आए पर जब भी ज़रूरत पड़े हमारा नाम लेना इस जहाँ में होंगे तो ज़रूर आएंगे दोसती मरते दम तक निभाएंगे.....

मीठी बातें

उसकी बातें सुन कर मुझ को , वक़्त लगा कुछ ठहरा सा , लेकिन उन मीठी बातों मैं , प्यार छुपा था गहरा सा …. मैं भी हाथ थाम लेता उसका , लेकिन सांसों पर है पहरा सा , जो भी हो उन मीठी बातों मैं , प्यार छुपा था गहरा सा … रात मिला वोह सपनो मैं , कुछ परेशा , कुछ हैरान सा , कह के गया वो ऐसी बातें , जिनमे प्यार छुपा था गहरा सा … फूल खिल गए इस जीवन में, पहले था जो वीरान सा … ऐसी मीठी बातें थी वह , जिनमे प्यार छुपा था गहरा सा

उसकी याद

रोज़ तारों को नुमाइश मैं खलल पड़ता है चाँद पागल ही अँधेरे में निकल पड़ता है में समंदर हूँ कुधाली से नहीं कट सकता कोई फव्वारा नहीं हूँ जो उबल पड़ता है कल जहाँ चाँद उगा करते थे हर आहट पर अपने रस्ते में जो वीरान महल पड़ता है न तारुफ़ न ताल्लुक है मगर दिल अक्सर नाम सुनता है तुम्हारा उछल पड़ता है उसकी याद आई है साँसों ज़रा धीरे चलो धडकनों से भी इबादत में खलल पड़ता है