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Showing posts from September, 2009

मेरी चादर

ये मेरी चादर है, जिसमें मैं खुद को छुपा लेता हूं............. कभी सजाता हूँ अपने आशियाने को इससे ........... कभी खुद इसे आशियाना बना लेता हूँ............. जो जिस्म मेरा झलकता है इन कतरनों से उसको ये छुपा लेती है.......... जो आंसूं गिरे मेरी आंखों से... ये पोछ लेती हैं ........... डर जाता हूँ जब अँधेरे से मैं, ये मुझे लोरियाँ सुना देती हैं ........... जब कभी गिरा मैं ओर ख़ून बहा .... ये सारे ज़ख़्म सोख लेती हैं.......... इतना अकेला हो चुका हूँ ... कि अब बेजान सी चीजों से भी बातें कर लेता हूँ .........

जंग जिंदगी से

मैं दो कदम चलता और एक पल को रुकता मगर........... इस एक पल जिन्दगी मुझसे चार कदम आगे बढ जाती । मैं फिर दो कदम चलता और एक पल को रुकता और.... जिन्दगी फिर मुझसे चार कदम आगे बढ जाती । युँ ही जिन्दगी को जीतता देख मैं मुस्कुराता और...... जिन्दगी मेरी मुस्कुराहट पर हैंरान होती । ये सिलसिला यहीं चलता रहता..... फिर एक दिन मुझे हंसता देख एक सितारे ने पुछा.......... " तुम हार कर भी मुस्कुराते हो ! क्या तुम्हें दुख नहीं होता हार का ? " तब मैंनें कहा................ मुझे पता हैं एक ऐसी सरहद आयेगी जहाँ से आगे जिन्दगी चार कदम तो क्या एक कदम भी आगे ना बढ पायेगी, तब जिन्दगी मेरा इन्तज़ार करेगी और मैं........ तब भी युँ ही चलता रुकता अपनी रफ्तार से अपनी धुन मैं वहाँ पहुँगा......... एक पल रुक कर, जिन्दगी को देख कर मुस्कुराउगा.......... बीते सफर को एक नज़र देख अपने कदम फिर बढाँउगा। ठीक उसी पल मैं जिन्दगी से जीत जाउगा......... मैं अपनी हार पर भी मुस्कुराता था और अपनी जीत पर भी........ मगर जिन्दगी अपनी जीत पर भी ना मुस्कुरा पाई थी और अपनी हार पर भी ना रो पायेगी"