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शीशे के सपने

ये शीशे ये सपने ये रिश्ते ये धागे किसे क्या ख़बर है कहाँ टूट जायें मुहब्बत के दरिया में तिनके वफ़ा के न जाने ये किस मोड़ पर डूब जायें अजब दिल की बस्ती अजब दिल की वादी हर एक मोड़ मौसम नई ख़्वाहिशों का लगाये हैं हम ने भी सपनों के पौधे मगर क्या भरोसा यहाँ बारिशों का मुरादों की मंज़िल के सपनों में खोये मुहब्बत की राहों पे हम चल पड़े थे ज़रा दूर चल के जब आँखें खुली तो कड़ी धूप में हम अकेले खड़े थे जिन्हें दिल से चाहा जिन्हें दिल से पूजा नज़र आ रहे हैं वही अजनबी से रवायत है शायद ये सदियों पुरानी शिकायत नहीं है कोई ज़िन्दगी से