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Showing posts from 2009

ऐसा क्यों होता है ?

ऐसा क्यों होता है ? ऐसा क्यों होता है ? उमर बीत जाती है करते खोज मीत मन का मिलता ही नहीं एक परस के बिना हृदय का कुसुम पार कर कितनी ऋतुएँ खिलता नहीं उलझा जीवन सुलझाने के लिए अनेकों गाँठें खुलतीं वह कसती ही जाती जिसमें छोर फँसे हैं ऊपर से हँसने वाला मन अंदर ही अंदर रोता है ऐसा क्यों होता है? ऐसा क्यों होता है ? छोटी-सी आकांक्षा मन में ही रह जाती बड़े-बड़े सपने पूरे हो जाते सहसा अंदर तक का भेद सहज पा जाने वाली दृष्टि देख न पाती जीवन की संचित अभिलाषा साथ जोड़ता कितने मन पर एकाकीपन बढ़ता जाता बाँट न पाता कोई से सूनेपन को हो कितना ही गहरा नाता भरी-पूरी दुनिया में भी मन खुद अपना बोझा ढोता है ऐसा क्यों होता है ? ऐसा क्यों होता है ? कब तक यह अनहोनी घटती ही जाएगी कब हाथों को हाथ मिलेगा सुदृढ़ प्रेममय कब नयनों की भाषा नयन समझ पाएंगे कब सच्चाई का पथ काँटों भरा न होगा क्यों पाने की अभिलाषा में मन हरदम ही कुछ खोता है! ऐसा क्यों होता है ? ऐसा क्यों होता है ?

मैं कौन हूँ ..........

आखिर हूँ तो मैं कौन हूँ ? इस सवाल से परेशान हूँ ...... मैं हर पल खुद से अनजान हूँ .... कभी ज़मीन कभी आसमान हूँ ..... कभी खुद एक रास्ता हूँ ......... कभी हर रास्ते से अनजान हूँ .... कभी चन्दन कभी मैं धुल हूँ . कभी निश्चय कभी एक भूल हूँ ... कभी महफिल कभी तन्हाई हूँ ..... कभी सतह कभी गहराई हूँ ..... कभी सोच हूँ एक विचार हूँ .... कभी बेबस कभी लाचार हूँ .... कभी उदास कभी निराश हूँ .... कभी एक रौशनी एक आश हूँ ..... कभी पहला कदम एक शुरुवात हूँ . कभी एक अनसुनी सी बात हूँ ..... कभी एक स्पर्श एक एहसाश हूँ ..... कभी उस दिल के कितने पास हूँ ... कभी किसी के दर्द का समाधान हूँ कभी किसी के आंसुओं की पहचान हूँ ... कभी एक खुसी एक हंसी हूँ ..... कभी किन्ही आँखों की नमी हूँ .... कभी दोस्त कभी हमदर्द हूँ ....... कभी खुद किसी का दर्द हूँ ...... एक भावना एक जज्बात हूँ ..... हर रिश्ते की शुरुवात हूँ ....... कभी एक विश्वास कभी एक धोखा हूँ .. एक तनहा हवा का झोंका हूँ .... कभी हर पल मैं एक ख्याल हूँ ... कभी हर वक़्त मैं एक सवाल हूँ .. मैं हर पल को जीना चाहता हूँ . ज़िन्दगी का हर घ

शीशे के सपने

ये शीशे ये सपने ये रिश्ते ये धागे किसे क्या ख़बर है कहाँ टूट जायें मुहब्बत के दरिया में तिनके वफ़ा के न जाने ये किस मोड़ पर डूब जायें अजब दिल की बस्ती अजब दिल की वादी हर एक मोड़ मौसम नई ख़्वाहिशों का लगाये हैं हम ने भी सपनों के पौधे मगर क्या भरोसा यहाँ बारिशों का मुरादों की मंज़िल के सपनों में खोये मुहब्बत की राहों पे हम चल पड़े थे ज़रा दूर चल के जब आँखें खुली तो कड़ी धूप में हम अकेले खड़े थे जिन्हें दिल से चाहा जिन्हें दिल से पूजा नज़र आ रहे हैं वही अजनबी से रवायत है शायद ये सदियों पुरानी शिकायत नहीं है कोई ज़िन्दगी से

मेरी चादर

ये मेरी चादर है, जिसमें मैं खुद को छुपा लेता हूं............. कभी सजाता हूँ अपने आशियाने को इससे ........... कभी खुद इसे आशियाना बना लेता हूँ............. जो जिस्म मेरा झलकता है इन कतरनों से उसको ये छुपा लेती है.......... जो आंसूं गिरे मेरी आंखों से... ये पोछ लेती हैं ........... डर जाता हूँ जब अँधेरे से मैं, ये मुझे लोरियाँ सुना देती हैं ........... जब कभी गिरा मैं ओर ख़ून बहा .... ये सारे ज़ख़्म सोख लेती हैं.......... इतना अकेला हो चुका हूँ ... कि अब बेजान सी चीजों से भी बातें कर लेता हूँ .........

जंग जिंदगी से

मैं दो कदम चलता और एक पल को रुकता मगर........... इस एक पल जिन्दगी मुझसे चार कदम आगे बढ जाती । मैं फिर दो कदम चलता और एक पल को रुकता और.... जिन्दगी फिर मुझसे चार कदम आगे बढ जाती । युँ ही जिन्दगी को जीतता देख मैं मुस्कुराता और...... जिन्दगी मेरी मुस्कुराहट पर हैंरान होती । ये सिलसिला यहीं चलता रहता..... फिर एक दिन मुझे हंसता देख एक सितारे ने पुछा.......... " तुम हार कर भी मुस्कुराते हो ! क्या तुम्हें दुख नहीं होता हार का ? " तब मैंनें कहा................ मुझे पता हैं एक ऐसी सरहद आयेगी जहाँ से आगे जिन्दगी चार कदम तो क्या एक कदम भी आगे ना बढ पायेगी, तब जिन्दगी मेरा इन्तज़ार करेगी और मैं........ तब भी युँ ही चलता रुकता अपनी रफ्तार से अपनी धुन मैं वहाँ पहुँगा......... एक पल रुक कर, जिन्दगी को देख कर मुस्कुराउगा.......... बीते सफर को एक नज़र देख अपने कदम फिर बढाँउगा। ठीक उसी पल मैं जिन्दगी से जीत जाउगा......... मैं अपनी हार पर भी मुस्कुराता था और अपनी जीत पर भी........ मगर जिन्दगी अपनी जीत पर भी ना मुस्कुरा पाई थी और अपनी हार पर भी ना रो पायेगी"

मैं यू ही नहीं लिखता

उनको ये शिकायत है.. मैं बेवफ़ाई पे नही लिखता, और मैं सोचता हूँ कि मैं उनकी रुसवाई पे नही लिखता.' 'ख़ुद अपने से ज़्यादा बुरा, ज़माने में कौन है ?? मैं इसलिए औरों की.. बुराई पे नही लिखता.' 'कुछ तो आदत से मज़बूर हैं और कुछ फ़ितरतों की पसंद है , ज़ख़्म कितने भी गहरे हों?? मैं उनकी दुहाई पे नही लिखता.' 'दुनिया का क्या है हर हाल में, इल्ज़ाम लगाती है, वरना क्या बात?? कि मैं कुछ अपनी.. सफ़ाई पे नही लिखता.' 'शान-ए-अमीरी पे करू कुछ अर्ज़.. मगर एक रुकावट है, मेरे उसूल, मैं गुनाहों की.. कमाई पे नही लिखता.' 'उसकी ताक़त का नशा.. "मंत्र और कलमे" में बराबर है !! मेरे दोस्तों!! मैं मज़हब की, लड़ाई पे नही लिखता.' 'समंदर को परखने का मेरा, नज़रिया ही अलग है यारों!! मिज़ाज़ों पे लिखता हूँ मैं उसकी.. गहराई पे नही लिखता.' 'पराए दर्द को , मैं ग़ज़लों में महसूस करता हूँ , ये सच है मैं शज़र से फल की, जुदाई पे नही लिखता.' 'तजुर्बा तेरी मोहब्बत का'.. ना लिखने की वजह बस ये!! क़ि 'शायर' इश्क़ में ख़ुद अपनी, तबाही पे नहीं लिखता...

फासले तेरे मेरे बीच के

कही चाँद रहो में खो गया कही चांदनी भी भटक गयी में चिराग हूँ वोह भी बुझा हुआ मेरी रात कैसे चमक गयी , मेरी दास्तान का वजूद था तेरी नर्म पलकों की छाओ में , मेरे साथ था तुझे जागना तेरी आँख कैसे झपक गयी , कभी हम मिले तो भी क्या मिला वही दूरियां .... ... वोही फासले ना कभी हमारे क़दम बढे ना तुम्हारी झिजक गयी , तुझे भूल जाने की कोशिशे कभी कामयाब ना हो सकी , तेरी याद शक -ऐ -गुलाब है जो हवा चली तो लचक गयी तेरे हाथ से मेरे होंठो तक वोही इनेज़ार की प्यास है

दर्द का एहसास

अपने दिल को पत्थर का बना कर रखना , हर चोट के निशान को सजा कर रखना । उड़ना हवा में खुल कर लेकिन , अपने कदमों को ज़मी से मिला कर रखना । छाव में माना सुकून मिलता है बहुत , फिर भी धूप में खुद को जला कर रखना । उम्रभर साथ तो रिश्ते नहीं रहते हैं , यादों में हर किसी को जिन्दा रखना । वक्त के साथ चलते-चलते , खो ना जाना , खुद को दुनिया से छिपा कर रखना । रातभर जाग कर रोना चाहो जो कभी , अपने चेहरे को दोस्तों से छिपा कर रखना । तुफानो को कब तक रोक सकोगे तुम , कश्ती और मांझी का याद पता रखना । हर कहीं जिन्दगी एक सी ही होती हैं , अपने ज़ख्मों को अपनो को बता कर रखना । मन्दिरो में ही मिलते हो भगवान जरुरी नहीं , हर किसी से रिश्ता बना कर रखना

जब हम निकले

कंही फूल कंही भवर कंही रात और दिन सारी रुत तेरी मेरी कहानी निकले जब भी तुम्हारा ख्याल है आता मेरी सांसो से तेरी ही खुसबू निकले कंही ओस कंही बदल तो कंही रिमझिम बारिश सरे मंजर में तेरे मेरे ही किस्से निकले दूर होकर भी हम पास रहे आज दुरी के उस पार हम निकले कंही पत्तो की सरसराहट कंही चाँद और चादनी सारी रंगिनिया तेरे मेरे मिलन की कहानी निकले

ज़िन्दगी दोस्तों से है

खुशी भी दोस्तो से है, गम भी दोस्तो से है, तकरार भी दोस्तो से है, प्यार भी दोस्तो से है, रुठना भी दोस्तो से है, मनाना भी दोस्तो से है, बात भी दोस्तो से है, मिसाल भी दोस्तो से है, नशा भी दोस्तो से है, शाम भी दोस्तो से है, जिन्दगी की शुरुआत भी दोस्तो से है, जिन्दगी मे मुलाकात भी दोस्तो से है, मौहब्बत भी दोस्तो से है, इनायत भी दोस्तो से है, काम भी दोस्तो से है, नाम भी दोस्तो से है, ख्याल भी दोस्तो से है, अरमान भी दोस्तो से है, ख्वाब भी दोस्तो से है, माहौल भी दोस्तो से है, यादे भी दोस्तो से है, मुलाकाते भी दोस्तो से है, सपने भी दोस्तो से है, अपने भी दोस्तो से है, या यूं कहो यारो, अपनी तो दुनिया ही दोस्तो से

ALL ABOUT TRUE LOVE

अब अक्सर चुप-चुप से रहे हैं यूं ही कभी लब खोले हैं पहले "फ़िराक़" को देखा होता अब तो बहुत कम बोले हैं दिन में हम को देखने वालों अपने अपने हैं औक़ाब जाओ न तुम इन ख़ुश्क आँखों पर हम रातों को रो ले हैं फ़ितरत मेरी इश्क़-ओ-मोहब्बत क़िस्मत मेरी तन्हाई कहने की नौबत ही न आई हम भी कसू के हो ले हैं बाग़ में वो ख्वाब-आवर आलम मौज-ए-सबा के इशारों पर ड़ाली ड़ाली नौरस पत्ते सहस सहज जब ड़ोले हैं उफ़ वो लबों पर मौज-ए-तबस्सुम जैसे करवटें लें कौंदें हाय वो आलम जुम्बिश-ए-मिज़गां जब फ़ितने पर तोले हैं इन रातों को हरीम-ए-नाज़ का इक आलम होये है नदीम खल्वत में वो नर्म उंगलियां बंद-ए-क़बा जब खोले हैं ग़म का फ़साना सुनने वालों आखिर-ए-शब आराम करो कल ये कहानी फिर छेड़ेंगे हम भी ज़रा अब सो ले हैं हम लोग अब तो पराये से हैं कुछ तो बताओ हाल-ए-"फ़िराक़" अब तो तुम्हीं को प्यार करे हैं अब तो तुम्हीं से बोले हैं

कोई ख़ास नहीं हूँ मैं

कोई तुमसे पूछे कौन हूँ मैं , तुम कह देना कोई ख़ास नहीं . एक दोस्त है कच्चा पक्का सा , एक झूठ है आधा सच्चा सा . जज़्बात को ढके एक पर्दा बस , एक बहाना है अच्छा अच्छा सा . जीवन का एक ऐसा साथी है , जो दूर हो के पास नहीं . कोई तुमसे पूछे कौन हूँ मैं , तुम कह देना कोई ख़ास नहीं . हवा का एक सुहाना झोंका है , कभी नाज़ुक तो कभी तुफानो सा . शक्ल देख कर जो नज़रें झुका ले , कभी अपना तो कभी बेगानों सा . जिंदगी का एक ऐसा हमसफ़र , जो समंदर है , पर दिल को प्यास नहीं . कोई तुमसे पूछे कौन हूँ मैं , तुम कह देना कोई ख़ास नहीं . एक साथी जो अनकही कुछ बातें कह जाता है , यादों में जिसका एक धुंधला चेहरा रह जाता है . यूँ तो उसके न होने का कुछ गम नहीं , पर कभी - कभी आँखों से आंसू बन के बह जाता है . यूँ रहता तो मेरे तसव्वुर में है , पर इन आँखों को उसकी तलाश नहीं . कोई तुमसे पूछे कौन हूँ मैं , तुम कह देना कोई ख़ास नहीं .