मेरी चादर

ये मेरी चादर है, जिसमें मैं खुद को छुपा लेता हूं.............

कभी सजाता हूँ अपने आशियाने को इससे ...........

कभी खुद इसे आशियाना बना लेता हूँ.............

जो जिस्म मेरा झलकता है इन कतरनों से उसको ये छुपा लेती है..........

जो आंसूं गिरे मेरी आंखों से... ये पोछ लेती हैं ...........

डर जाता हूँ जब अँधेरे से मैं, ये मुझे लोरियाँ सुना देती हैं ...........

जब कभी गिरा मैं ओर ख़ून बहा .... ये सारे ज़ख़्म सोख लेती हैं..........

इतना अकेला हो चुका हूँ ... कि अब बेजान सी चीजों से भी बातें कर लेता हूँ .........

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